जीवन जीने की कला
मैं खुद बदलूँगा। दुनिया तभी बदलेगी।।
एक दिन सारे कर्मचारी जब ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ा-सा नोटिस लगा दिखा:--
'इस कंपनी में अभी तक जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गई।
हम आपको उसे आखिरी बार देखने का मौका दे रहे हैं,
कृपया बारी-बारी से मीटिंग हॉल में जाएं और उसे देखने का कष्ट करें।'
जो भी नोटिस पढ़ता उसे पहले तो दुख होता
...लेकिन फिर जिज्ञासा होती कि आखिर वो कौन था, जिसने उसकी ग्रोथ रोक रखी थी... ??
और वो हॉल की तरफ चल देता...।
देखते-देखते हॉल के बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा हो गई |
गार्ड ने सभी को रोक रखा था और उन्हें एक-एक करके अंदर जाने दे रहा था।
सबने देखा कि अंदर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर होकर बा...
प्यार और भरोसे
एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ।
आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है।
महिला सोचती है: "मैं गिरने वाली हूँ! और मैं नहीं चढ़ सकती क्योंकि साँप मुझे काटने वाला है।"
आदमी थोड़ा अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींच सकता है! "
आदमी सोचता है: "मैं बहुत दर्द में हूँ! फिर भी मैं अभी भी आपको उतना ही खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकते हूँ!सामने वाला खुद कोशिश क्यों नहीं करता और थोड़ा कठिन चढ़ाई को पार कर लेता?"
नैतिकता: आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जि...
सच्चे मित्र
कोई भी व्यक्ति संसार में अकेला नहीं जी सकता, क्योंकि वह अल्पशक्तिमान् है। इसलिए अपने सारे काम स्वयं नहीं कर सकता। एक दूसरे की सहायता लेनी ही पड़ती है। और सब लोग, सब की सहायता करते नहीं। सहायता लेने देने के लिए एक आपसी संबंध होता है, जिसे मित्रता कहते हैं। मित्र का अर्थ होता है, स्नेह करने वाला. यह स्नेह संबंध चाहे मां बेटी में हो, चाहे पिता पुत्र में हो, चाहे पति-पत्नी में हो, चाहे दो दोस्तों में हो, इन सब में जो स्नेह का संबंध है, वही मित्रता है।
मित्र ऐसा बनाएं, जो एक दूसरे के कष्ट को समझे, और हृदय से उस की समस्याओं को दूर करने का पूरा प्रयत्न करे।
संसार में आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे, जिनमें इस प्रकार की मित्रता देखी जाती है। उदाहरण के लिए यदि बेटा बीम...
बोझ
एक महात्मा ने पूछा कि सबसे ज्यादा बोझ कौन सा जीव उठा कर घुमता है ?........
किसी ने कहा गधा तो किसी ने बैल तो किसी ने ऊंट अलग अलग प्राणीयो के नाम बताए।
लेकिन महात्मा किसी के भी जवाब से संतुष्ट नहीं हुए।
महात्मा ने हंसकर कहा - गधे, बैल और ऊट के ऊपर हम एक मंजिल तक बोझ रखकर उतार देते हैं लेकिन, इंसान अपने मन के ऊपर मरते दम तक विचारों का बोझ लेकर घूमता है किसी ने बुरा किया है उसे न भूलने का बोझ, आने वाले कल का बोझ, अपने किये पापों का बोझ इस तरह कई प्रकार के बोझ लेकर इंसान जीता है।
जिस दिन इस बोझ को इंसान उतार देगा तब सही मायने मे जीवन जीना सीख जाएगा।
जीवन साधना के त्रिविध पंचशील (भाग 1)
साधना चाहे घर पर की जाय अथवा एकान्तवास में रहकर, मनःस्थिति का परिष्कार उसका प्रधान लक्ष्य होना चाहिए। साधना का अर्थ यह नहीं कि अपने को नितान्त एकाकी अनुभव कर वर्तमान तथा भावी जीवन को नहीं, मुक्ति- मोक्ष को, परलोक को लक्ष्य मानकर चला जाय। साधना विधि में चिन्तन क्या है, आने वाले समय को साधक कैसा बनाने और परिष्कृत करने का संकल्प लेकर जाना चाहता है, इसे प्रमुख माना गया है। व्यक्ति, परिवार और समाज इन तीनों ही क्षेत्रों में बँटे जीवन सोपान को व्यक्ति किस प्रकार परिमार्जित करेंगे, उसकी रूपरेखा क्या होगी, इस निर्धारण में कौन कितना खरा उतरा इसी पर साधना की सफलता निर्भर है।
कल्प साधना में भी इसी तथ्य को प्रधानता दी गयी है। एक प्रकार से यह व्यक्ति का समग्र काया कल्प है, जिसमें उसका वर्त...
जीवन साधना के त्रिविध पंचशील (भाग 2)
प्रज्ञा साधकों के लिए उपरोक्त तीन क्षेत्र के लिए इस प्रकार हैः-
व्यक्तित्व का विकास
(१) प्रातः उठने से लेकर सोने तक की व्यस्त दिनचर्या निर्धारित करें। उसमें उपार्जन, विश्राम, नित्य कर्म, अन्यान्य काम- काजों के अतिरिक्त आदर्शवादी परमार्थ प्रयोजनों के लिए एक भाग निश्चित करें। साधारणतया आठ घण्टा कमाने, सात घण्टा सोने, पाँच घण्टा नित्य कर्म एवं लोक व्यवहार के लिए निर्धारित रखने के उपरान्त चार घण्टे परमार्थ प्रयोजनों के लिए निकालना चाहिए। इसमें भी कटौती करनी हो, तो न्यूनतम दो घण्टे तो होने ही चाहिये। इससे कम में पुण्य परमार्थ के, सेवा साधना के सहारे बिना न सुसंस्कारिता स्वभाव का अंग बनती है और न व्यक्तित्व का उच्चस्तरीय विकास सम्भव होता है।
(२) आजीविका बढ़...
Happiness प्रसन्नता
यदि आप जीवन में प्रसन्नता चाहते है तो
जिस के भी संपर्क में आए, उसकी मन ही मन कुछ न कुछ भलाई अवश्य करें।
दयालुता का भाव रखें
भद्र व्यवहार करें
दूसरों की बात समझने की कोशिश करें
दूसरों के प्रति सहायता का भाव रखें
दूसरों को ठेस न पहुंचाए
दूसरों के दोष न उघाड़ना
दूसरों की कमजोरी में उनके प्रति उदार भाव रखे
ऐसे और छोटे छोटे विचार उन्हें मन से देते रहने से आप की खुशी बढ़ती जाएगी।
अगर भगवान को सामने देखते हुए उपरोक्त विचार करें तो आप की खुशी अनेकों गुणा बढ़ जाएगी।...
अपेक्षा ही दुःख का कारण!
किसी दिन एक मटका और गुलदस्ता साथ में खरीदा हों और घर में लाते ही 50 रूपये का मटका अगर फूट जाएं तो हमें इस बात का दुःख होता हैं। क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थीं। परंतु गुलदस्ते के फूल जो 100 रूपये के हैं, वो शाम तक मुरझा जाएं, तो भी हम दुःखी नहीं होते। क्योंकि ऐसा होने वाला ही हैं, यह हमें पता ही था।
मटके की इतनी जल्दी फूटने की हमें अपेक्षा ही नहीं थीं, तो फूटने पर दुःख का कारण बना। परंतु फूलों से अपेक्षा थीं, इसलिए वे दुःख का कारण नहीं बनें। इसका मतलब साफ़ हैं कि जिसके लिए जितनी अपेक्षा ज़्यादा, उसकी तरफ़ से उतना दुःख ज़्यादा और जिसके लिए जितनी अपेक्षा कम, उसके लिए उतना ही दुःख भी कम।।
"ख़ुश रहें .. स्वस्थ रहें .. मस्त रहें .....
10% का हक
एक बहुत अमीर आदमी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा.. "तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो...??"
भिखारी ने जवाब दिया... "मेरे पास महीनों से कोई काम नहीं है...
अगर आप मुझे कोई नौकरी दें तो मैं अभी से भीख मांगना छोड़ दूँ"
अमीर मुस्कुराया और कहा.. "मैं तुम्हें कोई नौकरी तो नहीं दे सकता ..
लेकिन मेरे पास इससे भी अच्छा कुछ है...
क्यूँ नहीं तुम मेरे बिज़नस पार्टनर बन जाओ..."
भिखारी को उसके कहे पर यकीन नहीं हुआ...
"ये आप क्या कह रहे हैं क्या ऐसा मुमकिन है...?"
"हाँ मेरे पास एक चावल का प्लांट है.. तुम चावल बाज़ार में सप्लाई करो और जो भी मुनाफ़ा होगा उस...
व्यक्तित्व का विकास कैसे करें
(१) प्रातः उठने से लेकर सोने तक की व्यस्त दिनचर्या निर्धारित करें। उसमें उपार्जन, विश्राम, नित्य कर्म, अन्यान्य काम- काजों के अतिरिक्त आदर्शवादी परमार्थ प्रयोजनों के लिए एक भाग निश्चित करें। साधारणतया आठ घण्टा कमाने, सात घण्टा सोने, पाँच घण्टा नित्य कर्म एवं लोक व्यवहार के लिए निर्धारित रखने के उपरान्त चार घण्टे परमार्थ प्रयोजनों के लिए निकालना चाहिए। इसमें भी कटौती करनी हो, तो न्यूनतम दो घण्टे तो होने ही चाहिये। इससे कम में पुण्य परमार्थ के, सेवा साधना के सहारे बिना न सुसंस्कारिता स्वभाव का अंग बनती है और न व्यक्तित्व का उच्चस्तरीय विकास सम्भव होता है।
(२) आजीविका बढ़ानी हो तो अधिक योग्यता बढ़ायें। परिश्रम में तत्पर रहें और उसमें गहरा मनोयोग लगायें। साथ ही अपव्यय में कठोरता पू...